बेचारा दिल अकेला पड़ा रह गया
--- अरुण सिन्हा
(वर्ष 2002 में लिखी गयी मेंरी कविता)
मेंरे दिल के पास एक छोटा-सा दरवाजा था
पूंजी के नाम पर वही केवल एक दिल था
विश्वास की कड़ी थी, अपनत्व का चौखट था
आबाध प्रवेश किया करती थी--
सुकोमल भावनाएं, निश्चछल आकांक्षाए,
ऊंचे विचार, ऊंचे आदर्श और गंगा की पवित्रता में--
तैरा करता था मेंरा वह दिल।
खुला दरवाजा देख कर, दहलिज
को लांघ कर-
प्रवेश कर गया कोई
दिल को उल्टा-पल्टा
और सहलाया फिर
दिल भी दिल से जुड़
गया जैसे
मिल गया हो उसको अपना
कोई
मादक-सी लगने लगी थी--
चाँद का उभरना और दौड़ना
चांदनी चादर के आंचल में राते कटती थी-
कभी सो कर, तो कभी जाग कर,
तारों से इशारों में बाते कर लिया करता था
बादलों से भी तेज दौड़ पड़ती थी कल्पनाएं
थम-सा गया था सूर्य का भी करवट बदलना
हठात, एक दिन दरवाजा खुला
रह गया
बेचारा दिल अकेला पड़ा
रह गया
सिसकता दिल, टूटा
दिल, बेचैन दिल--
सूने दरवाजे को
निहारता रह गया
---- अरुण सिन्हा
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