Wednesday, November 28, 2012

                                बेचारा दिल अकेला पड़ा रह गया

                                                                                   --- अरुण  सिन्हा
(वर्ष 2002 में लिखी गयी मेंरी कविता)

मेंरे दिल के पास एक छोटा-सा दरवाजा था
पूंजी के नाम पर वही केवल एक दिल था
विश्वास की कड़ी थी, अपनत्व का चौखट था
आबाध प्रवेश किया करती थी--
सुकोमल भावनाएं,  निश्चछल आकांक्षाए,
ऊंचे विचार, ऊंचे आदर्श और गंगा की पवित्रता में--
तैरा करता था मेंरा वह दिल।
                 
खुला दरवाजा देख कर, दहलिज को लांघ कर-
                  प्रवेश कर गया कोई
                  दिल को उल्टा-पल्टा और सहलाया फिर
                  दिल भी दिल से जुड़ गया जैसे
                  मिल गया हो उसको अपना कोई

मादक-सी लगने लगी थी--
 चाँद का उभरना और दौड़ना
चांदनी चादर के आंचल में राते कटती थी-
कभी सो कर, तो कभी जाग कर,
तारों से इशारों में बाते कर लिया करता था
बादलों से भी तेज दौड़ पड़ती थी कल्पनाएं
थम-सा गया था सूर्य का भी करवट बदलना
                 
हठात, एक दिन दरवाजा खुला रह गया
                  बेचारा दिल अकेला पड़ा रह गया
                  सिसकता दिल, टूटा दिल, बेचैन दिल--
                  सूने दरवाजे को निहारता रह गया
                              ---- अरुण सिन्हा

 

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