Monday, November 5, 2012

......... हे पार्थ ! विजय भवः ।


        हे पार्थ ! इस पृथ्वी पर जब-जब अत्याचार, अन्याय, बेईमानी, अराजकता, पाप, कुकर्म आदि सीमा को पार कर बढ़ता जायेगा तब-तब हर युग में मैं जन्म लेता रहूंगा और जब तक इनका संघार नही कर लूंगा मैं चैन से नही बैठूंगा। मैं हर युग में हमेशा न्याय के साथ खड़ा तुम्हे मिलूंगा। है पार्थ ! इस युद्धभूमि में आज तुम्हारे साथ मैं खड़ा हूं और आज भी मैं वचनबद्ध हूं कि अस्त्र नहीं उठा सकता (यानि राजनीति में नहीं जाऊंगा) । है, अर्जुन, तुम तो किसी भी शर्त से नहीं बंधे हो। फिर उठो, आज तुम्हारा अस्त्र राजनीति बचा है,कूद जाओ इसमें। पार्ष ! राजनिति में आना किसी की बपौती नही है। तुमने शांति के सारे मार्ग अपना लिये। मैं भी था तुम्हारे साथ, सिर्फ जनलोकपाल बिल ही तो मांगा था, कैसा धोखा और अपमान मिला ! भ्रष्टाचार से निर्मुक्त भारत का निर्माण ही तो चाहा था जहां भ्रष्टाचारियो को दंड का प्रावधान सुनिश्चित किया जाना था। हम दोलों को चोर तक कहा गया। आखिर यह भी घोशित करना पड़ा कि देश में ऐसा कानून तो बना लिया जाये और पहला मामला मेंरे ऊपर ही  चलाया जाये और दोषी साबित होने पर मूझे दंडित भी कर दिया  जाये।  पार्थ ! उधर से पितामह भीष्म, गुरु द्रोण, कृपाचार्य आदि सभी लोग थे, जो बोल सकते थे वे सब के सब विल्कुल मौन बैठ गये है (जैसे संसद की कार्रवाई) । सब के सब या तो भयभीत है या किसी न किसी मजबूरी से बंधे हूये है ।   धृतराष्ट्र (यानि प्रधानमं....) एवं गांधारी (यूपीए की अध्यक्षा) तो सत्ता के मद एवं पुत्रमोह (नाम नही वर्णन करुंगा,आप समझदार है ही) में अंधे हैं, एक को तो कुछ दिखता भी नही और जिसको दिखता है वह आंखो पर पट्टी बांध रखे हुये है और उनके लिये देश से बड़ा पुत्रमोह है। बड़े-बड़े सम्मानित पद खैरात में बांटे जा रहे हैं, प्रतिभा के स्थान पर चाटूकारिता का मापदंड राजसत्ता के लिये हो गया है। विपक्ष कमजोर है और भय से कोई प्रतिवाद तक नही करता। देश मे लोकतंत्र के नाम पर द्रोपदी का चीर हरण हो रहा है। दुर्योधन (कांग्रेस) सत्ता के नशे में चूर है, शकुनी भी कई है। वे जानते है कि  कर्ण जैसे योद्धा (मुलायम और माया .. और .... ) मजवूरीवश ही सही  इस घड़ी में भी उनके साथ खड़ा है, इसलिये इनके सिंहासन को फिल्हाल कोई खतरा भी नही है।   है पार्थ ! जब मैं मांगा था कि जनलोकपाल पर एक कानून बने, कैसा ड्रामा किया गया, मुझे सैलुट तक दिया गया, फिर भी बात नही बनी तो कहा गया कि चुनाव के यूद्ध में आओ। हे गांडीवधारी अर्जुन, फिर यही एकमात्र विकल्प हमारे पास बचा है। षडंयंत्र का लाक्षागृह तो तुम्हे याद ही होगा। ये सब तुम्हारे ही बंधू-बांधव है जो अरजकता की सीमा को लांघते जा रहे है। यदि इस समय भी औरो की तरह चूप बैठोगे तो इतिहास तुम्हे कभी माफ नही करेंगा। लोगो को पार्थ. तुमसे बहुत सारी उम्मीदे है, उनकी उम्मीदो पर खड़े उतरो। पार्थ ! तुम्हारी लड़ाई लम्बी है, विरोधियो के पास ताकत है, संख्याबल में भी वे तुमसे अधिक है, उनके पास छल- कपट है, फिर भी तुम घबराओ नही। युद्ध हौसलो से जीता जाता है। हे पार्थ, न्याय का पक्ष तुम्हारे साथ  है, तुम निश्चित विजय होगे क्योंकि मैं भी न्याय के पक्ष में तुम्हारे साथ खड़ा हूं और अंतर सिर्फ इतना है कि मैं हथियार उठा नही सकता, वचनबद्ध हूं, परन्तु तुम तो किसी भी बंधन से बंधे नही हो, न लोभ हे, न छल-कपट  है, न अहंकार है, वैसे भी न्याय और त्याग करना तुम जानते भी हो (इतनी प्रतिष्ठित नौकरी छोड कर)। हे कौतंय, फिर तुम्हे राजनीति में आने की बार-बार चुनौती भी तो मिलती रही है और जिसे तुमने स्वीकार भी किया है, बार-बार के तुम्हारे सत्य के तरकस से निकला हुआ तीर तुम्हारे  भ्रष्टाचार के शत्रुओ को नाश कर देगा, फिर  तुम रण क्षेत्र में आये भी नही हो कि  तुम्हारे प्रतिद्वंदी अभी से ही कहना प्रारंभ कर दिये है  कि तुम कोई न कोई वज्र अस्त्र  छोड़ रहे हो, फिर आगे के युद्ध के लिये तो तुम्हारे तरकस में अभी ब्रह्मास्त्र भी तो है।
      अतः हे पार्थ, अब तो रणभूमि सज चुका है। यह युद्ध अब न्याय और अन्याय के बीच का है। और इतिहास गवाह भी है कि हर युग में आखरी विजय न्याय की ही होती है और फिर न्याय के पक्ष में मैं भी तुम्हारे साथ इस युद्धभूमि में आज  खड़ा हूं सिर्फ अंतर यह है कि मैं हथियार (राजनीसि) नही उठाने की अपनी वचनबद्धता में वंधा हूं और तुम सभी बंधनो से मुक्त हो, फिर  हम दोनों का उद्देश्य भी तो  एक ही है -- न्याय की प्राप्ति, सत्य का स्थापना और भारत को गौरवशाली बनाना। उठो, इस सपने को साकार करो, रण क्षेत्र तुम्हारा इंतजार कर रहा है।
............. हे पार्थ ! विजय भवः ।

    

2 comments:

  1. जिनकी तुलना महाभारत के अर्जुन से की है वह साहब वर्तमान पी एम साहब के नुमाईन्दे हैं और जन-समस्याओं से ध्यान बंटाने के लिए तरह-तरह के नाटक कारपोरेट लाबी के इशारे पर कर रहे हैं।

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    1. प्रिय भाई विजय जी,
      मेंरे लेख पर आपकी प्रतिक्रिया को मैं सादर सहर्ष स्वीकार करता हूं। मैं जे0पी0
      आंदोलन से काफी निकट और सक्रियता से जूड़ा था। उस समय उल्हे भी
      अमेरिका का एजेंड कहा गया था। ईमानदार व्यक्ति ही सत्ता और ताकत के
      खिलाफ कुछ बोलने का साहस कर सकता है क्योकि उसके पास कुछ खोने
      का होता नहीं। खैर क्या कहेंगे, यहां तो ..सीता भी बदनाम हूई।

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